भारत के किसान, हमारे अन्नदाता, केवल अन्न उत्पादन तक सीमित नहीं हैं, वे देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती और करोडों लोगों के जीवन निर्वाह का आधार भी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीते कुछ वर्षों में किसानों की खुशहाली और दीर्घकालिक समृद्धि के लिए अनेक दूरगामी एवं प्रभावशाली पहलें की गई हैं। इन पहलों में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। ये संगठन विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक शक्ति-स्रोत बनकर उभरे हैं, जो सामूहिक सहयोग, आर्थिक सहायता और आधुनिक बाजारों तक सीधी पहुँच के माध्यम से भारतीय कृषि को एक नई दिशा और नया आयाम प्रदान कर रहे हैं।
एफपीओ, किसानों के स्वामित्व और संचालन वाले सामूहिक उद्यम होते हैं, जिनका उद्देश्य उनकी सौदेबाजी की शक्ति बढाना, लागत घटाना और बाजार तक बेहतर पहुँच प्रदान करना होता है। 31 दिसंबर 2024 तक, केंद्र सरकार की योजना के अंतर्गत 9,268 एफपीओ पंजीकृत किए जा चुके हैं। यह योजना, जिसकी घोषणा 29 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा की गई थी, 6,865 करोड रुपये के बजट के साथ वर्ष 2027-28 तक जारी रहेगी। 14 कार्यान्वयन एजेंसियों के माध्यम से लागू की जा रही इस योजना में प्रत्येक एफपीओ को तीन वर्षों में 18 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता तथा क्लस्टर-आधारित व्यापार संगठन और मूल्य श्रंखला संगठन से पाँच वर्षों तक पेशेवर सहयोग प्रदान किया जाता है।
28 फरवरी 2025 तक 4,392 एफपीओ को ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) मंच से जोडा जा चुका है, जिससे किसान डिजिटल माध्यमों से सीधे बाजारों तक पहुँचकर पारंपरिक मंडियों की तुलना में बेहतर मूल्य प्राप्त कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की किसान-हितैषी सोच ने इन पहलों को दिशा और गति दी है। छोटे और सीमांत किसानों की प्रमुख समस्याओं जैसे सीमित बाजार पहुँच, अधिक लागत और कम सौदेबाजी की क्षमता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एफपीओ और प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (पीएम-एफएमई) जैसी योजनाओं को प्राथमिकता दी है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत जून 2020 में शुरू की गई पीएम-एफएमई योजना, 10,000 करोड रुपये के परिव्यय के साथ वर्ष 2026 तक 2 लाख सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को समर्थन प्रदान कर रही है। ऋण-संबद्ध सहायता, बीज पूंजी और क्षमता निर्माण के माध्यम से यह योजना किसानों और एफपीओ को उनके उत्पादों में मूल्यवर्धन करने में सक्षम बनाती है। प्रधानमंत्री मोदी के “स्थानीय के लिए मुखर” अभियान ने किसानों को पंजाब का “आसना”, महाराष्ट्र का “भीमथडी” और सिक्किम की “तेमी चाय” जैसे ब्रांड्स तैयार करने के लिए प्रेरित किया है, जिससे उनकी बाजार में उपस्थिति और लाभ में वृद्धि हुई है।
किसानों को दीर्घकालिक लाभ स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहे हैं। वर्ष 2015-16 से पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा 1,150 करोड रुपये आवंटित किए गए, जिससे 379 एफपीओ और किसान उत्पादक कंपनियाँ (एफपीसी) स्थापित हुईं, जिनसे 1,89,039 किसान और 1,72,966 हेक्टेयर भूमि लाभान्वित हुई। इन संगठनों को 394 भंडारण, एकत्रण एवं ग्रेडिंग इकाइयों, 123 प्रसंस्करण एवं पैक हाउस इकाइयों तथा 145 परिवहन वाहनों की सुविधा प्रदान की गई है, जिससे फसलोत्तर क्षति में कमी आई है।
7,901 एफपीओ को ओपन नेटवर्क फार डिजिटल कामर्स (ओएनडीसी) से और 216 को सरकारी ई-बाजार (जेम) मंच से जोडा गया है, जिससे किसानों को व्यापक बाजारों और उचित मूल्यों की गारंटी प्राप्त हुई है। 2,195 मत्स्य किसान उत्पादक संगठन (एफएफपीओ) को भी ओएनडीसी से जोडा गया है, जिससे यह योजना केवल पारंपरिक किसानों ही नहीं, बल्कि मछुआरों को भी सशक्त बना रही है।
पीएम-एफएमई योजना ने भी महत्वपूर्ण परिणाम दिए हैं। 31 मार्च 2025 तक इसके ऋण-संबद्ध सहायता घटक के अंतर्गत 1,37,228 ऋण स्वीकृत किए गए तथा 11,03,72 ऋण व्यक्तिगत लाभार्थियों, एफपीओ, स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) और सहकारी समितियों को वितरित किए गए। इसके अतिरिक्त, 3,33,181 स्वयं सहायता समूह सदस्यों को 1,123 करोड रुपये की बीज पूंजी प्रदान की गई, जिससे वे खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ आरंभ या विस्तारित कर सकें।
इस योजना के अंतर्गत 672 प्रमुख प्रशिक्षक, 1,132 जिला-स्तरीय प्रशिक्षक, और 10,88,34 लाभार्थियों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है, जिससे किसानों को प्रसंस्करण और विपणन का व्यावसायिक कौशल प्राप्त हुआ। 205.36 करोड रुपये के बजट के साथ 75 प्रोत्साहन केंद्र (इनक्यूबेशन सेंटर) स्वीकृत किए गए, जिनमें से 17 पहले से ही संचालित हो रहे हैं।
संस्थागत ऋण तक किसानों की पहुँच में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2014-15 से 2023-24 तक कृषि क्षेत्र को प्रदान किया गया ऋण तीन गुना बढ़कर 25.48 लाख करोड रुपये हो गया है। अल्पकालिक कृषि ऋण 6.4 लाख करोड से बढ़कर 15.07 लाख करोड रुपये हो गया है। किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के तहत ब्याज सहायता 6,000 करोड से बढ़कर 14,252 करोड रुपये हो गई है। विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों की ऋण प्राप्ति की हिस्सेदारी 57% से बढ़कर 76% हो गई है।
आज, किसान औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से सरकार द्वारा समर्थित बिना जमानत ऋण प्राप्त कर सकते हैं, जिससे वे उन्नत तकनीकों में निवेश कर उपज और आय में वृद्धि कर पा रहे हैं।
इन सभी प्रयासों से एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। किसान अब केवल स्थानीय बाजारों या बिचौलियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि एफपीओ के माध्यम से डिजिटल मंचों से जुडकर प्रदर्शनियों, मेलों और प्रत्यक्ष खरीदारों तक पहुँच बना रहे हैं। 2,343 से अधिक विशेष एफपीओ, जिनमें महिला, शहद, बांस और प्राकृतिक खेती हेतु गठित संगठन शामिल हैं, कृषि क्षेत्र में समावेशिता और विविधता को बढावा दे रहे हैं।
पिछले 11 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार ने भारतीय किसानों को एक नई ऊर्जा और आत्मबल प्रदान किया है। एफपीओ और पीएम-एफएमई जैसी योजनाओं ने उन्हें उद्यमशील, नवाचारी और तकनीकी रूप से सक्षम बनाया है। ई-नाम, ओएनडीसी, जेम जैसे डिजिटल मंचों तक पहुँच और प्रशिक्षण व पूंजी की व्यापक उपलब्धता ने उनकी आजीविका को सशक्त बनाया है। हमें पूर्ण विश्वास है कि आने वाले समय में केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी व अन्य अधिकारी इसमें कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। ये सभी प्रयास एक विकसित और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की नींव हैं, जहाँ किसान न केवल देश का पोषण करते हैं, बल्कि अपने सपनों को भी साकार करते हैं और भारत को एक उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर करते हैं।