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भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं बल्कि पूरी सभ्यता का आधार है – 24.02.2025 (वीर अर्जुन)

हर साल 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। यह केवल एक तारीख नहीं, बल्कि हमारी पहचान और संस्कृति से जुड़ने का एक शानदार मौका है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक पूरी सभ्यता का आधार होती है। जब कोई भाषा विलुप्त जाती है, तो उसके साथ एक पूरी संस्कृति, परंपराएं और इतिहास भी खत्म हो जाता है।

इस दिवस की शुरुआत एक ऐतिहासिक संघर्ष से हुई थी। साल 1952 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान, जिसे अब बांग्लादेश के तौर पर पहचाना जाता है, वहां छात्रों ने अपनी मातृभाषा बंगाली को आधिकारिक दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन किया था। पाकिस्तान सरकार ने उर्दू को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया था, जबकि वहां की ज्यादातर आबादी बंगाली बोलती थी। जब छात्रों ने अपने अधिकारों की माँग की, तो उन पर गोलियां चला दी गईं। सलाम, रफीक, जब्बार जैसे कई छात्रों ने अपनी मातृभाषा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। लेकिन उनका यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया, और 1956 में बंगाली को पाकिस्तान की आधिकारिक भाषाओं में जगह मिली। इस संघर्ष की याद में यूनिस्को ने 1999 में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मान्यता दी। तब से यह दिन दुनिया भर में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के महत्व को रेखांकित करने के लिए मनाया जाता है।

भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि एक समाज की पहचान होती है। यह हमें हमारी परंपराओं, रीति-रिवाजों और सोचने-समझने के तरीके से जोड़ती है। जब हम अपनी मातृभाषा में बात करते हैं, तो हम केवल संवाद नहीं करते, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी जीवित रखते हैं। कई शोध बताते हैं कि जिन बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होती है, वे अधिक आत्मविश्वासी और रचनात्मक होते हैं।

आज दुनिया में 7000 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन इनमें से तकरीबन 40% भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं। भारत में भी स्थानीय भाषाओं की स्थिति चिंताजनक है। यहां सैकड़ों भाषाएं संकटग्रस्त हैं और धीरे-धीरे बोलने वालों की संख्या कम हो रही है। इसका मुख्य कारण अंग्रेज़ी और अन्य प्रमुख भाषाओं का बढ़ता प्रभाव है। माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेज़ी सिखाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं, जिससे क्षेत्रीय भाषाएं पीछे छूट रही हैं।

सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस दौर में भाषाओं की स्थिति और भी जटिल हो गई है। डिजिटल दुनिया में अंग्रेज़ी का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है, और क्षेत्रीय भाषाएं इंटरनेट पर पीछे रह गई हैं। अधिकतर वेबसाइटें, एप्लिकेशन और डिजिटल कंटेंट अंग्रेज़ी में मौजूद हैं, जिससे लोगों की अपनी मातृभाषा में पढ़ने-लिखने की आदत कमजोर हो रही है। 

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस केवल एक औपचारिकता नहीं होनी चाहिए। यह हमें आत्मविश्लेषण करने का मौका देता है कि हम अपनी भाषा के लिए क्या कर रहे हैं। हमें अपनी मातृभाषा में ज्यादा से ज्यादा बात करनी चाहिए, इसे अपने बच्चों को सिखाना चाहिए और आजकर की इंटरनेट दुनिया में भी इसे आगे बढ़ाना चाहिए।

भारत एक ऐसा देश है, जहाँ भाषाओं की विविधता असाधारण है। हर भाषा का अपना एक अनूठा स्वाद और पहचान है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस शक्ति को अच्छे से समझते हैं। मातृभाषा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने देश को भाषाई धरोहर की महत्वता का सही अर्थ समझाया है।

पीएम मोदी का मानना है कि मातृभाषा सिर्फ एक संवाद का साधन नहीं, बल्कि एक संस्कृति की आत्मा है। उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर भाषाई विविधता की झलक दिखाने की कोशिश की है।  पीएम मोदी ने शिक्षा के क्षेत्र में भी मातृभाषा के महत्व को उजागर किया है। उनका मानना है कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होने से बच्चों का मानसिक विकास और आत्मविश्वास बढ़ता है। उन्होंने नई शिक्षा नीति में इस बात को प्रमुखता से शामिल किया, जिससे आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का प्रयास किया जा सके।

मातृभाषा के प्रति पीएम मोदी की प्रतिबद्धता ने भाषाई समरसता को भी बढ़ावा दिया है। उन्होंने विभिन्न राज्यों और समुदायों के बीच संवाद को प्रोत्साहित किया, जिससे भाषाओं के माध्यम से एकता की भावना को मजबूत किया जा सके।

भाषा केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, पहचान और अस्तित्व का प्रतीक है। अगर हम अपनी भाषा नहीं बचाएंगे, तो आने वाली पीढ़ियां हमारी शानदार संस्कृति को भूल जाएंगी। इसलिए इस दिवस पर संकल्प लें कि हम अपनी मातृभाषा के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे। याद रखें, भाषा की रक्षा, संस्कृति की रक्षा है