मातृभाषा ‘हिन्दी’ को न सिर्फ उत्तर भारतीयों ने अपितु दक्षिण, पूर्व और पश्चिम के अधिसंख्य लोगों ने अंगीकार किया है। हिन्दी भारत के जन-जन की भाषा है, हमारे अंतःकरण की भाषा है। एक प्रशासक के रूप में मैंने अपने संपूर्ण सेवाकाल में हिन्दी के संवर्धन हेतु यथासंभव कार्य संपादित किया और अन्य सहकर्मियों को भी प्रेरित किया जिससे मुझे आज भी अत्यंत गर्व की अनुभूति होती है।