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अध्यक्षीय उद्बोधन
(पद्मश्री, पद्मभूषण आचार्य यार्लगड्डा लक्ष्मीप्रसाद) अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन 2024 के अवसर पर

विश्‍व हिन्दी परिषद द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन 2024 के सुअवसर पर अपने अध्यक्षीय भाषण में पूर्व राज्यसभा सांसद, संसदीय राजभाषा समिति, भारत सरकार के पूर्व उपाध्यक्ष व विश्व हिंदी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय पद्मश्री, पद्मभूषण आचार्य यार्लगड्डा लक्ष्मीप्रसाद ने कहा कि मातृभाषा हिन्दी का संविधान में जो स्थान मिलना चाहिए अभी तक नहीं मिल पाया है। अपने वक्तव्य में माननीय लक्ष्मीप्रसाद ने कहा कि देश की तीन चौथाई लोगों की भाषा हिन्दी है। पूर्वोत्तर भारत की भी संपर्क भाषा हिन्दी है। देश की आम जनता, शिक्षाविदों, समाज के सभी वर्गों, राजनेताओं और अधिकारियों को हिन्दी को सशक्त और सम्बंधित करने के लिए संविधान के अधिनियमों में संबोधन के लिए एकजुट होकर आगे आना होगा, तभी अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग बंद हो सकेगा। इसके लिए दृढ़ ईच्छा शक्ति की जरूरत है। इस अक्सर पर उन्होंने कहा कि जापान, रूस, चीन, इजराइल, जर्मनी के शोधपत्र अपनी भाषा में ही प्रकाशित होती है, तो हमारे देश में शोधपत्र हिन्दी में क्यों नही प्रकाशित हो सकती। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि बतौर भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक होने के नाते, मैं हमेशा हिन्दी भाषा में ही व्याख्यान देता था और हमारे द्वारा पढ़ाऐ गए विद्यार्थी प्रधानमंत्री, कैबिनेट सचिव और कई सचिव बन चुके हं। उन्होंने कहा कि सर व मैडम कहलाना लोगों को विशेष रूप से पसंद है लेकिन भाई व बहन जी का संबोधन में उन्हें रूचि नही होती।उन्होंने कहा कि बच्चों को कान्वेंट में अंग्रेजी की कविता-‘ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार’ तो सिखा दिया जाता है, लेकिन हमारे बच्चों को राम चरित मानस के दोहे से वंचित रखा जाता है। उन्होंने कहा कि मातृभाषा हिन्दी का सम्मान करना चाहते है तो इसकी शुरूआत घर से कीजिए।

परिषद द्वारा पूर्व के कार्यक्रम के सहयोगी संस्था