प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में “स्वस्थ भारत” के जिस संकल्प को साकार करने की दिशा में देश आगे बढ़ा, उसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और दूरदर्शी रहा है।स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी सँभालते हुए नड्डा जी ने जन-औषधि योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, स्वच्छ भारत अभियान में स्वास्थ्य समन्वय, और टीकाकरण कार्यक्रमों को एक सशक्त ढांचे में ढाला।
उनके कार्यकाल में जन-औषधि केंद्रों का तेज़ी से विस्तार हुआ, जिससे सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाइयाँ आमजन तक पहुँचने लगीं। यह केवल एक सरकारी योजना नहीं थी, बल्कि नड्डा जी के स्वास्थ्य-प्रबंधन दर्शन का हिस्सा थी — “स्वास्थ्य सेवा का अधिकार हर नागरिक का मौलिक हक़ है।”उनके मार्गदर्शन में स्वास्थ्य मंत्रालय ने न केवल दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की, बल्कि यह भी तय किया कि जन-औषधि केंद्र गांव-गांव, ज़रूरतमंदों तक पहुँचें और उनमें भरोसा जगे।स्वास्थ्य मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा ने स्वास्थ्य को केवल एक सेवा नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की नींव माना। उन्होंने तकनीकी नवाचार, स्वास्थ्य शिक्षा और जन-जागरूकता को प्राथमिकता देकर नीतिगत सोच को धरातल पर उतारा।
भारत सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री भारतीय जन-औषधि परियोजना (PMBJP) आज एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले चुकी है। यह योजना केवल सस्ती दवाओं की उपलब्धता भर नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य में समानता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गई है। इस सफलता के पीछे जिस प्रशासनिक दक्षता, मिशन भावना और समर्पित नेतृत्व ने भूमिका निभाई है, उनमें श्री रवि दधीच,, भारतीय औषधि एवं चिकित्सा उपकरण ब्यूरो (PMBI), का नाम अत्यंत उल्लेखनीय है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गई भारतीय जन-औषधि परियोजना देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक क्रांतिकारी पहल साबित हुई है। इस योजना का मूल उद्देश्य था— आम नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण दवाएँ अत्यंत किफायती मूल्य पर उपलब्ध कराना। इस उद्देश्य को मूर्त रूप देने में भारतीय औषधि एवं चिकित्सा उपकरण ब्यूरो (PMBI) के नेतृत्व की अहम भूमिका रही है। विशेषकर सीईओ श्री रवि दधीच के कुशल और दूरदर्शी प्रबंधन ने इस योजना को ज़मीन पर प्रभावी रूप से उतारा।
वर्ष 2024 तक पूरे देश में 15,000 से अधिक जन-औषधि केंद्र सक्रिय हो चुके हैं। ये केंद्र आज देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। इनसे हर दिन 10 से 12 लाख नागरिकों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल रहा है, जिससे विशेषकर गरीब, ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को राहत मिली है।
अब तक जन-औषधि केंद्रों के माध्यम से ₹6,975 करोड़ मूल्य की दवाइयाँ वितरित की जा चुकी हैं। इसका प्रत्यक्ष लाभ यह हुआ कि नागरिकों ने लगभग ₹30,000 करोड़ की बचत की है, जो न केवल उनके स्वास्थ्य बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण का भी प्रतीक है। यह बचत उस वर्ग के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जिसके लिए स्वास्थ्य पर खर्च करना एक बड़ी चुनौती होता था।
श्री रवि दधीच के नेतृत्व में इस योजना ने ऑपरेशनल एफिशिएंसी, मजबूत सप्लाई चेन, और नई तकनीकों के एकीकरण को प्राथमिकता दी है। दवा की उपलब्धता, भंडारण और वितरण की पूरी प्रणाली को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह न केवल तेज़ हो, बल्कि भरोसेमंद और जवाबदेह भी बनी रहे।
योजना की पारदर्शिता को बढ़ाने हेतु जन-औषधि पोर्टल और मोबाइल ऐप जैसे डिजिटल टूल्स विकसित किए गए हैं, जिनके माध्यम से नागरिक अब किसी भी दवा की उपलब्धता, मूल्य और निकटतम केंद्र की जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। इन नवाचारों ने योजना को डिजिटल इंडियाअभियान से भी जोड़ा है और आम लोगों को तकनीक से सशक्त किया है।
प्रधानमंत्री भारतीय जन-औषधि परियोजना (PMBJP) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री रवि दधीच ने अपनी प्रशासनिक प्रतिभा और सेवा-भाव से यह सुनिश्चित किया कि जन-औषधि केंद्र केवल कागज़ों तक सीमित न रहें, बल्कि जमीनी हकीकत बनें। उनकी रणनीतिक सोच और कार्यान्वयन की स्पष्टता ने इस योजना को देश के हर ज़िले, शहर और अब ग्रामीण इलाकों तक फैलाने में निर्णायक भूमिका निभाई।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा परिकल्पित “हर नागरिक को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवा” की दिशा में श्री रवि दधीच ने नीतियों को परिणामों में बदलने का कार्य अत्यंत सफलतापूर्वक किया है। जन-औषधि योजना को संस्थागत मजबूती देना, आपूर्ति शृंखला को चुस्त बनाना, और इसे लाभप्रद मॉडल के रूप में स्थापित करना — ये सब उनकी प्रशासनिक दक्षता के प्रमाण हैं।
आज भारत न केवल घरेलू स्तर पर बल्कि वैश्विक बाजार में भी गुणवत्तापूर्ण, किफायती दवाओं के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, जो कभी एक स्वप्न था। पीएम मोदी के प्रयासों से योग, आयुर्वेद और आयुष प्रणाली को वैश्विक पहचान मिली है। जब विश्व प्राकृतिक संकटों से जूझ रहा है, योग स्वस्थ जीवनशैली की ओर प्रेरित कर रहा है। आयुर्वेद के माध्यम से प्रकृति को क्षति पहुँचाए बिना उत्तम स्वास्थ्य संभव हुआ है, जिसकी मिसाल कोरोना काल में भी दिखी।
मोदी सरकार की पहल से आयुर्वेदिक उत्पादों का निर्यात 700 मिलियन डॉलर तक पहुँच चुका है, जो 2014 की तुलना में लगभग दोगुना है। यह विस्तार आयुष सेवाओं, अनुसंधान, गुणवत्ता नियंत्रण, तकनीकी विकास और जन-भागीदारी का परिणाम है। सरकार ने अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, पंचकर्म भवन, योग प्रयोगशाला तथा औषध अनुसंधान इकाई जैसी संस्थाओं की स्थापना कर अनुसंधान को बल दिया है। औषधीय पादपों की खेती से किसान भी लाभान्वित हो रहे हैं। आहार क्रांति मिशन, एनसीसीआर पोर्टल व आयुष संजीवनी ऐप इस अभियान को मजबूती दे रहे हैं।
आज भारत दुनिया में वैल्यूम के लिहाज से तीसरा और वैल्यू के आधार पर 11वाँ सबसे बड़ा फार्मा उत्पादक देश है। 2013-14 में जहाँ फार्मा निर्यात ₹90,415 करोड़ था, वहीं अब यह ₹2,19,439 करोड़ तक पहुँच चुका है। वित्त वर्ष 2023-24 में दवा उद्योग का टर्नओवर ₹4,17,345 करोड़ रहा। जेनेरिक दवाओं में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी 20% है और वैक्सीन आपूर्ति में हम प्रमुख हैं। बीते वर्षों में यूनिसेफ को वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति में भारत का योगदान 55-60% तक रहा है। वहीं, WHO के टीकों की आपूर्ति में भी भारत अग्रणी है।
चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में भी भारत तेजी से प्रगति कर रहा है। वैश्विक स्तर पर शीर्ष 20 में और एशिया में चौथे स्थान पर है। अप्रैल-दिसंबर 2024 के बीच एफडीआई प्रवाह ₹11,888 करोड़ रहा, जबकि 13 ब्राउनफील्ड परियोजनाओं में ₹7,246.40 करोड़ का निवेश स्वीकृत हुआ। फार्मा सेक्टर एफडीआई आकर्षण में टॉप 10 में शामिल है, जिसकी हिस्सेदारी 3.78% है। पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत का फार्मा, योग, आयुर्वेद और आयुष तंत्र दृढ़ संकल्प, आधुनिक सोच और वैश्विक दृष्टि से समृद्ध हो रहा है। मेक इन इंडिया के माध्यम से हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते हुए वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि, यह केवल एक शुरुआत है; 2047 तक विकसित भारत के निर्माण हेतु हमें इस दिशा में एक लंबी यात्रा तय करनी है।