vishwa hindi parishad
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की इन पंक्तियों को कोट करते हुए विशिष्ट अतिथि के रूप में उन्होंने अपने उद्बोधन की शुरूआत कीः-‘‘गवाक्ष तब भी था, जब वह खोला न गया,सच तब भी था, जब वह बोला न गया।’’