मातृभाषा प्रेमियों के लिए यह दुर्भाग्य की बात है कि अपने राष्ट्र की भाषा को प्रतिस्थापित करने हेतु ‘हिन्दी-दिवस’ जैसे कार्यक्रम आयोजित करने की जरूरत पड़ती है और सौभाग्य की बात यह है कि आजादी के बाद तत्कालीन सरकार के अधिकांशतः नेता गैर हिन्दी प्रदेशों से थे जिन्होंने राष्ट्रभाषा के रूप में ‘हिन्दी’ की पुरजोर वकालत की, अंततः राजभाषा के रूप में हिन्दी को संवैधानिक रूप से अंगीकृत किया गया।