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राष्ट्रीय एकता और सेवा में संघ की भूमिका – 17.03.2025 (वीर अर्जुन)

केरल के नेय्याट्टिनकारा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी के विरोध का घटनाक्रम फिर से यह दर्शाता है कि भारत में विचारधाराओं का संघर्ष निरंतर जारी है। तुषार गांधी ने अपने भाषण में आरएसएस पर “देश की आत्मा को कैंसर से ग्रस्त करने” का आरोप लगाया, जिससे संघ समर्थकों में आक्रोश उत्पन्न हुआ। यह आवश्यक है कि इस प्रकार के आरोपों का विश्लेषण वस्तुनिष्ठ दृष्टि से किया जाए।

आरएसएस भारत की सबसे बड़ी सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है, जो राष्ट्रवाद, सेवा और अनुशासन को प्राथमिकता देता है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद, संघ ने समाज सुधार, आपदा राहत और राष्ट्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में भी, संघ के स्वयंसेवक देशभर में सेवा कार्यों से जुड़े हुए हैं, चाहे वह आपदाओं के समय राहत कार्य हो, शिक्षा के क्षेत्र में योगदान हो, या फिर सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना हो।

विचारधारा के आधार पर संघ को निशाना बनाना कोई नई बात नहीं है। लेकिन यह भी सत्य है कि संघ ने सदैव ‘राष्ट्र प्रथम’ के सिद्धांत को अपनाया है। महात्मा गांधी स्वयं भी संघ के शिविरों में गए थे और उनकी अनुशासनप्रियता से प्रभावित हुए थे।

लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार बिना तथ्यों के आरोप लगाने की छूट नहीं देता। संघ ने हमेशा भारतीयता, स्वाभिमान और सामाजिक समरसता का समर्थन किया है। ऐसे में केवल वैचारिक मतभेद के कारण उसे कठघरे में खड़ा करना उचित नहीं है। भारत की आत्मा उसकी संस्कृति और सभ्यता में निहित है, और संघ उसी को सशक्त करने का कार्य कर रहा है।

आज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष भाजपा-आरएसएस की राष्ट्र निर्माण की विचारधारा को तोड़ने का भरपूर प्रयास कर रही है। अपने व्यक्तिगत हितों को साधने के लिए वे देश की एकता और सुरक्षा को भी दांव पर लगाने के लिए तैयार हैं। वे हमारे देश को उत्तर बनाम दक्षिण के आधार पर बाँटना चाहते हैं। वे हमारे समाज को तोड़ने के लिए राजनीतिक और बौद्धिक स्तर पर कई प्रकार की भ्रांतियां फैला रहे हैं, ताकि, वे सत्ता में फिर से वापस आ सकें। 

सनातन विरोधी यह जान लें कि भारत, रामायण और महाभारत की धरती है। यदि इन ग्रंथों का पालन हम नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? क्या हम वेदों का पालन न कर, अरब के रीति-रिवाजों का पालन करें? क्या हम सनातन धर्म को छोड़, शरिया अपना लें? 

कहने की आवश्यकता नहीं है कि बीते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई में भारत बीते 10 वर्षों में बेहद सशक्त और जागरूक हो चुका है। हमारे देश की जनता किसी भी प्रकार के बहकावे में नहीं आने वाली है। इसका प्रमाण हम 2014 और 2019 की तरह, हमने 2024 में एक बार फिर से देखा।

बीते एक दशक में देश को एक सूत्र में पिरोने के लिए भाजपा सरकार द्वारा सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक स्तर पर कई प्रयास किये गए हैं। इन प्रयासों से हमारे देश में भाषावाद, क्षेत्रवाद, सामाजिक असमानता जैसे कई मुद्दों की रोकथाम संभव हुई है। यहाँ मैं देश की आतंरिक सुरक्षा और अखंडता को सुनिश्चित करने की दिशा में हुए प्रयासों की विशेष रूप से प्रशंसा करना चाहूंगा।

केन्द्रीय राजनीति में मोदी आगमन से पूर्व जम्मू-कश्मीर हो या पूर्वोत्तर भारत, हर तरफ आतंकवाद और वामपंथी उग्रवाद का साया था। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की अगुवाई में आतंक के इन ‘हॉट स्पॉट्स’ को पूरी तरह से शांत कर दिया गया है।

मेरे इस कथन को आप इस प्रकार समझ सकते हैं कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद, यहाँ हिंसक घटनाओं और उससे होने वाली मौतों की संख्या में 72 प्रतिशत से भी अधिक की कमी आई है। वहीं, पूर्वोत्तर भारत में हिंसक घटनाओं में 65 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसके अलावा, यहाँ वामपंथी उग्रवाद में भी 80 प्रतिशत की कमी आई है और अमित शाह स्पष्ट कर चुके हैं कि वर्ष 2026 तक हम नक्सलवाद को पूरी तरह से समाप्त कर देंगे।

देश की शांति और अखंडता को सुनिश्चित करने की दिशा में हमें यह सफलता निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी की कल्याणकारी नीतियों और दूरदर्शी सोच की वजह से मिली है।

उन्होंने बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान जैसे सभी सीमा से लगने वाले देशों के प्रति एक स्पष्ट नीति बनाई है। क्योंकि, ये ऐसे देश हैं, जहाँ चीनी निवेश का दायरा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और यह भारत की दृष्टि से बेहद चुनौतीपूर्ण मामला है। 

अब विपक्षी एक विभाजनकारी मानसिकता के साथ चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, वे जनता का विश्वास कभी नहीं जीत सकते हैं। वहीं, मोदी-शाह ने कभी स्वयं को देश से कटा हुआ हिस्सा मानने वाली आबादी की चिन्ताओं को, उनके मुद्दों को केन्द्र में रखते हुए, जो प्रयास किया है। उससे उनकी जन-स्वीकार्यता पहले से भी अधिक हो गई है। 

यही विश्वास हमें अगले 25 वर्षों में भारत को वैश्विक मंच पर एक नई महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में सक्षम बनाएगा। इसी विश्वास के साथ हमारे समाज के वंचित वर्गों में आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक प्रगति की नई लहर दौड़ेगी। हमें बस अपने संकल्पों पर अडिग रहते हुए कर्तव्यपथ पर निरंतर आगे बढ़ना है।