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राजभाषा की स्वर्णिम यात्रा: अमित शाह के नेतृत्व में हिंदी का गौरव पर्व – 30.06.2025 (वीर अर्जुन)

भारत की सांस्कृतिक आत्मा की संवाहक भाषा हिन्दी, जब शासन और प्रशासन की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित होती है, तो यह केवल एक भाषायी उपलब्धि नहीं होती — यह राष्ट्र की चेतना, उसकी पहचान और उसके संकल्प का उत्सव होती है। राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा हिन्दी को संवैधानिक राजभाषा के रूप में सशक्त बनाने हेतु किये गए निरंतर प्रयासों की स्वर्णिम यात्रा की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह, न केवल एक ऐतिहासिक पड़ाव रहा, अपितु एक प्रेरणादायी संस्कृति संवाद का अवसर भी बना।

दिनांक 26 जून, 2025 को “भारत मंडपम्, प्रगति मैदान, नई दिल्ली” में आयोजित इस गौरवशाली समारोह में देश-विदेश से हिन्दी सेवियों, भाषा विशेषज्ञों, नीति-निर्माताओं, शिक्षाविदों एवं लेखकों की गरिमामयी उपस्थिति ने आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया।

“भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं, वह एक राष्ट्र की आत्मा, चेतना और संस्कृति का प्रतीक होती है।”इसी आत्मा को प्रतिष्ठित करने वाली संस्था राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने अपनी स्थापना के 50 गौरवपूर्ण वर्ष पूरे किए। समारोह का आरंभ दीप प्रज्वलन और ‘वन्दे मातरम्’ की संगीतमय प्रस्तुति से हुआ। मंच पर विराजमान अतिथिगणों की उपस्थिति स्वयं में इस अवसर की गरिमा को दर्शा रही थी।

समारोह के शुरुआत में सभी प्रतिभागियों का स्वागत व्यक्त करते हुए राजभाषा विभाग की सचिव श्रीमती अंशुली आर्या जी ने कहा:”यह समारोह केवल स्मृति नहीं, संकल्प का प्रतीक है। हम हिन्दी को नवाचार, डिजिटल युग और शासन के हर स्तर पर सशक्त बनाने हेतु प्रतिबद्ध हैं।”भारत सरकार के राजभाषा विभाग की सचिव के रूप में श्रीमती अंशुली आर्या जी ने प्रशासनिक दक्षता, भाषायी समरसता और सांस्कृतिक चेतना के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य किया है। उनके नेतृत्व में राजभाषा हिंदी के संवर्धन, प्रचार-प्रसार और सरकारी कार्यों में प्रभावी प्रयोग को नई दिशा मिली है।उनका नेतृत्व सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि वैचारिक और सांस्कृतिक प्रेरणा का स्रोत रहा है। उन्होंने राजभाषा को मात्र एक औपचारिक दायित्व के रूप में नहीं देखा, बल्कि उसे राष्ट्रीय चेतना और जनसंवाद की आत्मा के रूप में प्रतिष्ठित किया।

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री मुख्य अतिथि के रूप में श्री अमित शाह अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा:”राजभाषा विभाग ने हिन्दी को केवल प्रशासनिक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है। हिन्दी हमारी एकता, परंपरा और सामूहिक चेतना की सबसे मजबूत कड़ी है।”श्री शाह ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को तकनीकी, प्रशासनिक और वैश्विक मंचों पर जो सशक्तता मिली है, वह अभूतपूर्व है।
श्री शाह ने ‘हिंदी शब्दसिंधु’ का विशेष उल्लेख करते हुए बताया कि यह एक अभिनव प्रयास है, जिससे हिन्दी को लचीली, समावेशी और समृद्ध भाषा बनाया जा रहा है। इसमें भारतीय भाषाओं के प्रचलित शब्दों को समाहित किया गया है ताकि हिन्दी को सभी भाषाओं से जोड़ा जा सके।साथ ही उन्होंने ‘भाषा संगमम्’ के अंतर्गत चल रही परियोजनाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे आज स्कूलों में छात्रों को 22 भारतीय भाषाओं में संवाद सिखाया जा रहा है। उन्होंने कहा:”भाषा संगमम् भारतीय भाषाओं की संजीवनी बनकर एक वटवृक्ष के रूप में विकसित होगा।”
गृह मंत्री ने गर्व से बताया कि मध्य प्रदेश में हिन्दी में मेडिकल शिक्षा की शुरुआत हो चुकी है और 12 भाषाओं में तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। यह दर्शाता है कि भारतीय भाषाएं अब केवल सांस्कृतिक विषय नहीं, बल्कि विज्ञान, तकनीक और भविष्य की भाषाएं बन रही हैं।”हर राज्य को अपनी मातृभाषा में इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा उपलब्ध करानी चाहिए।”श्री शाह ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह नीति केवल शिक्षा की दिशा नहीं बदल रही, बल्कि भारत को भाषाई रूप से आत्मनिर्भर भी बना रही है। कक्षा 5 तक मातृभाषा में शिक्षा, ई-सामग्री का अनुवाद, टीवी चैनलों और दीक्षा प्लेटफॉर्म पर 133 भाषाओं में उपलब्ध सामग्री — ये सब भारतीय भाषाओं के भविष्य को सुनहरा बना रहे हैं।गृह मंत्री ने यह जानकारी दी कि अब केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में परीक्षा भारतीय भाषाओं में आयोजित की जा रही है और 95% परीक्षार्थी अपनी मातृभाषा में परीक्षा दे रहे हैं। उन्होंने कहा, यह आत्मसम्मान की पुनर्स्थापना है।श्री शाह ने दो टूक कहा:”भाषा कभी भारत को तोड़ने का माध्यम नहीं बननी चाहिए। मोदी सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि भाषाएं भारत को जोड़ने की ताकत बनें।”उन्होंने यह भी कहा कि अब आवश्यकता है कि युवाओं को भारतीय भाषाओं से जोड़ा जाए। इसके लिए भारतीय भाषा अनुभाग की स्थापना की गई है जो राज्यों और भारत सरकार को भारतीय भाषाओं के उपयोग में मार्गदर्शन देगा।प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय भाषाओं को नया गौरव मिला है। मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है, और अब भारत के पास 11 शास्त्रीय भाषाएं हैं — जो किसी भी देश के लिए अद्वितीय है।”जिस राष्ट्र के पास 11 शास्त्रीय भाषाएं हों, उसकी सांस्कृतिक गहराई का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।”

दिल्ली के मुख्यमंत्री  श्रीमती रेखा गुप्ता, ने दिल्ली सरकार की ओर से हिन्दी भाषा के प्रति समर्थन जताते हुए कहा:”हिन्दी, दिल्ली की धड़कन है। इसे केवल विद्यालयों तक सीमित नहीं, तकनीक, रोजगार और शासन के हर स्तर पर प्रोत्साहन देना हमारी प्राथमिकता है।”संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष श्री भर्तृहरि महताब ने  प्रशासनिक प्रणाली में हिन्दी के व्यवहार को लेकर सुझाव रखते हुए कहा:”समस्त मंत्रालयों और विभागों को राजभाषा नीति का ईमानदारी से पालन करते हुए हिन्दी में कार्य करने की प्रवृत्ति को बढ़ाना चाहिए।”शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव,श्री अतुल कोठारी ने शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में हिन्दी के महत्व को रेखांकित किया:”हिन्दी केवल माध्यम नहीं, वह शिक्षा की आत्मा है। नई पीढ़ी को अगर जड़ों से जोड़ना है तो शिक्षा प्रणाली को भारतीय भाषाओं के अनुकूल बनाना होगा।”तमिलनाडु के हिन्दी शिक्षाविद् एवं लेखक,. डा. राजलक्ष्मी कृष्णन ने दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रति प्रेम और अभ्यास को साझा करते हुए उन्होंने कहा:”तमिलनाडु में आज भी हजारों छात्र हिन्दी सीख रहे हैं। यह राजभाषा विभाग की नीति, सरल पाठ्यक्रम और प्रतिबद्ध शिक्षक समुदाय का परिणाम है। हिन्दी अब दक्षिण भारत में एक ‘दूसरी मातृभाषा’ बनती जा रही है।”इस समारोह में विश्व हिन्दी परिषद के दस शीर्ष पदाधिकारी भी आमंत्रित थे, जिन्होंने उत्साहपूर्वक सहभागिता की। परिषद द्वारा एक विशेष प्रदर्शनी में हिन्दी के वैश्विक संदर्भ, तकनीकी उपयोग, और युवा पीढ़ी की भागीदारी पर विशेष सामग्री प्रदर्शित की गई। परिषद को भी राजभाषा सचिव द्वारा विशेष प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया गया।

स्वर्ण जयंती समारोह ने स्पष्ट कर दिया कि हिन्दी का भविष्य सशक्त, समावेशी और वैश्विक है। यह आयोजन हिन्दी प्रेमियों, प्रशासनिक अधिकारियों, शिक्षाविदों और नीति-निर्माताओं को एक मंच पर लाकर एक नये युग की शुरुआत का संकेत बना।राजभाषा विभाग की स्वर्ण जयंती सिर्फ 50 वर्षों की गणना नहीं है — यह एक ऐसे भविष्य की नींव है, जहाँ भारतीय भाषाएं राष्ट्र के हर अंग में चेतना, संवाद और संकल्प बनकर प्रवाहित होंगी।”राजभाषा हिन्दी और सभी भारतीय भाषाएं मिलकर ही भारत को आत्मनिर्भर, आत्मगौरवशाली और आत्मचिंतनशील राष्ट्र बना सकती हैं।”