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मोदी युग में रेलवे की नई पहचान : सुधार, सुरक्षा और सशक्तिकरण – 26.05.2025 (वीर अर्जुन)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बीते एक दशक में भारतीय रेल को एक नई ऊँचाई मिली है। इंफ्रास्ट्रक्चर हो या कर्मचारियों के जीवन में बेहतर बनाना – आज बदलाव हर आयाम में सुनिश्चित हो रही है।

हालांकि, कई शानदार उपलब्धियों के बावजूद विपक्ष द्वारा भारतीय रेल पर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं, जो वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है। आँकड़े बताते हैं कि 2013-14 की अवधि के दौरान रेल का जो पूंजीगत व्यय केवल 28,174 करोड़ रुपये था। आज उसका दायरा बढ़कर 2.65 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है। यही कारण है कि आज बुनियादी ढांचे का विकास हो या यात्रियों की सुविधा या सुरक्षा, हर क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हो रहे हैं।

केन्द्रीय बजट 2025-26 में रेलवे के पूंजीगत व्यय के लिए 2.65 लाख करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। यानी, बीते एक दशक में इस दिशा में लगभग 9 गुना बढ़ोत्तरी हुई है।

सरकार की योजना अगले 2-3 वर्षों में 100 अमृत भारत ट्रेनों, 200 वंदे भारत ट्रेनों, 50 नमो भारत रैपिड ट्रेनों और 17,500 सामान्य नॉन एसी कोच की है और इस बजट से निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने में निश्चित ही उल्लेखनीय मदद मिलेगी।

बीते एक दशक में रेल दुर्घटनाओं में 70% से भी अधिक कमी आई है। आँकड़े बताते हैं कि 2014-15 के दौरान 135 रेल दुर्घटनाएं हुई थीं, जो 2023-24 में घटकर 40 रह गया। वहीं, 2004-14 की अवधि में 1711 रेल दुर्घटनाएं (औसतन 171 प्रतिवर्ष) हुईं, जिसका दायरा बीते एक दशक के दौरान घटकर 678 (औसतन 68 प्रतिवर्ष) रह गया।

हमें यह सफलता निश्चित ही रेल लाइन को दुरुस्त बनाने, कोच और उपकरणों के बेहतर बनाने और मानवीय त्रुटियों को कम करने से मिली है। इसके अलावा, आज अत्याधुनिक स्वचालित ट्रेन सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए “कवच” व्यापक स्तर पर स्थापित किया जा रहा है। इस प्रणाली के लिए अब तक 1950 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।

गत वर्ष प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 78 दिनों के लिए उत्पादकता से जुड़े बोनस (पीएलबी) को स्वीकृति दी दे गई। इसके अंतर्गत 11.72 लाख अराजपत्रित रेल कर्मचारियों 2028.57 करोड़ भुगतान किए जाएंगे। वहीं, प्रत्येक कर्मचारी को अधिकतम देय राशि 17,951 रुपये है।

इसके अलावा, जहाँ तक सवाल लोको पायलटों का है, तो मोदी सरकार द्वारा वर्ष 2016 में उनके 10 घंटे की साइनऑन से साइनऑफ ड्यूटी को घटाकर 9 घंटे कर दिया गया। इतना ही नहीं, लोको पायलटों को बेहतर सीट और ड्राइवर डेस्क के लिए एर्गोनॉमिक क्रू फ्रेंडली डिजाइन सुविधाएं दी गईं। 2014 तक ऐसे केवल 719 लोको बनाए गए थे। जबकि, बीते 10 वर्षों में 7,286 लोको बनाए जा चुके हैं।

वहीं, 2017-18 से सभी नये लोको को एसी कैब से लैस किया जा चुका है। इसकी संख्या 7 हजार से भी अधिक है। ड्राइविंग के दौरान सतर्कता को सुनिश्चित करने के लिए, 2014 से अब तक 12,000 से अधिक सतर्कता नियंत्रण उपकरण (वीसीडी) और 21,742 फॉग सेफ डिवाइस (एफएसडी) उपलब्ध किये जा चुके हैं। इसके अलावा, ‘चालक दल’ नामक मोबाइल एप्लीकेशन का भी विकास किया गया।

आँकड़े बताते हैं कि 2004 से 2014 की अवधि के दौरान 4.11 लाख भर्तियां की गईं। वहीं, 2014 से 2024 के दौरान यह आँकड़ा 5.02 लाख रहा। यह दर्शाता है कि कांग्रेस के शासनकाल के मुकाबले, बीते एक दशक में रेल भर्तियों में बढ़ोत्तरी हुई है।

आँकड़ों के अनुसार, भारतीय रेलवे में बीते एक दशक में लगभग 2.65 लाख करोड़ रुपये की लागत से 23 हजार किलोमीटर से भी अधिक लंबाई की 297 परियोजनाओं को पूरा कर लिया गया। यह 8.54 किमी प्रति दिन की गति है, जो 2004-14 के दौरान 4.2 किमी प्रति दिन से दोगुना है।

आज भारतीय रेलवे में 98 प्रतिशत विद्युतीकरण हो चुका है और शेष पर गति के साथ कार्य जारी है। आँकड़े बताते हैं कि 2014 तक केवल 21,801 किलोमीटर लंबाई के रेल मार्गों का विद्युतीकरण हुआ था। जबकि, बीते 10 वर्षों में यह दायरा 45,922 किलोमीटर रहा है।

इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी के भागीरथी प्रयासों से भारतीय रेलवे को एक क्रांतिकारी स्वरूप मिला है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारतीय रेलवे का हमारे आर्थिक और सामाजिक जीवन में एक अति-महत्वपूर्ण स्थान है। रेलवे की इस सफलता में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की बड़ी भूमिका है। इस कड़ी में रेल सचिव अरुणा नायर और अन्य अधिकारियों का नाम लेना भी आवश्यक है।

हालांकि, आजादी के बाद लापरवाही और उदासीनता के कारण रेल व्यवस्था का समुचित विकास नहीं हो पाया। लेकिन, आज परिस्थितियां अलग हैं। आज जब हम वर्ष 2047 तक स्वयं को एक विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं, तो इसमें निःसंदेह रेलवे की एक उल्लेखनीय भूमिका होगी।