राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की पंक्तियों से अनुप्राणित होते हुए उन्हांेने कहाः-
‘‘वह प्रदीप जो दीख रहा है, झिलमिल दूर नहीं है,
थक कर बैठ गए क्यूं भाई, मंजिल दूर नहीं है।’’
मातृभाषा प्रेमियों से पूर्णतः भरे सभागार को देखकर अत्यंत हर्षित होते हुए महासचिव महोदय ने कहा कि आज हम सभी हिन्दी-प्रेमी केवल ‘हिन्दी दिवस’ मनाने नहीं बल्कि मातृभाषा हिन्दी के सम्मान में ‘राष्ट्रीय उत्सव’ मनाने को एकट्ठा हुए है।
जिस तरह राष्ट्रभाषा के बिना कोई राष्ट्र पंगु हो जाता है, उसी तरह हिन्दी के बिना हिन्दुस्तान अधूरा प्रतीत होता है।