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बीते एक दशक में हिन्दी की ऐतिहासिक यात्रा – 06.01.2025 (वीर अर्जुन)

आज पूरे सभी हिन्दी प्रेमियों के बीच ‘विश्व हिन्दी दिवस’ को लेकर अत्यंत उत्साह देखा जा रहा है। गौरतलब है कि इस दिवस को प्रति वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है।

यह दिवस हमें अपने देश के भाषाई विविधता को बढ़ावा देने और उत्सव मनाने का भी एक अभूतपूर्व अवसर प्रदान करता है। ध्यातव्य है कि हमारे संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को एक मत होकर हिन्दी को भारत की राजभाषा के तौर पर अंगीकार किया था। 

यह कोई छिपाने वाली बात नहीं है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, हिन्दी की यात्रा अत्यंत कठिन रही है। राजनीतिक कारणों के कारण हमारी प्यारी हिन्दी, राष्ट्रभाषा की स्वीकृति हासिल नहीं कर पायी। 

हालाँकि, पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की नेतृत्व में हिन्दी ने वैश्विक स्तर पर नई ऊँचाई हासिल की है। आज हिन्दी का प्रभाव 132 से अधिक देशों में फैला हुआ है, और जब से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने कार्यों और महत्वपूर्ण संदेशों को हिन्दी में प्रसारित करने का निर्णय लिया, तब से हिन्दी भाषियों का आत्मविश्वास एक नई ऊँचाई तक पहुँच चुका है।

आज के समय में हिन्दी को सामान्य जनामानस के अलावा, सरकारी विभागों, मण्डलों और समितियों में भी बढ़ावा देने के लिए गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग द्वारा अथक प्रयास किये जा रहे हैं और इन प्रयासों के लिए मैं मोदी-शाह के साथ ही, भारतीय जनता पार्टी के सभी साथियों को धन्यवाद प्रेषित करता हूँ। यदि आपने हिन्दी की चिन्ता न की होती। हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं को हमारे विचार-विमर्श का हिस्सा न बनाया होता। इसे हमारे गर्व और स्वाभिमान से न जोड़ा होता, तो शायद आज हिन्दी उस स्थिति में न होती, जहाँ आज है। 

बहरहाल, भारत प्राचीन काल से ही विविध भाषाओं का देश रहा है और आज हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। ‘हिन्दी’ ने हमारे इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को एकसूत्र में पिरोने का महान कार्य किया है। इसने हमारे विविध क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के अलावा, कई वैश्विक भाषाओं के साथ घुल-मिल कर पूरे विश्व में अपनी एक अनूठी पहचान बनाई है। 

हिन्दी ने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी एक ‘संवाद भाषा’  के तौर पर समाज को पुनर्जागृत करने में एक उल्लेखनीय भूमिका निभायी। इतिहास साक्षी है कि हमारे देश में ‘स्वराज’ प्राप्ति और ‘स्वभाषा’ के आन्दोलन एकसाथ चले। 

हालांकि, हिन्दी के प्रति सम्मान और इसके प्रसार को बढ़ावा कुछ लोगों को रास नहीं आता है। उन्हें लगता है कि हम आधुनिकता केवल अंग्रेज़ियत से हासिल कर सकते हैं। लेकिन, हमें यह समझना होगा कि किसी भी समाज में मौलिक और सृजनात्‍मक अभिव्‍यक्‍ति को केवल और केवल अपनी भाषा के माध्यम से ही विकसित किया जा सकता है। यह एक शाश्वत सत्य है कि हमारी अपनी मातृभाषा में भी हमारी उन्नति का मूल छिपा हुआ है। 

हमारी भाषाएँ, हमारी बोलियाँ, हमारी अमूल्य विरासत हैं। यदि हमें आगे बढ़ना है, तो इसे हमें साथ लेकर चलना ही होगा। इसी संकल्प के साथ बीते 10 वर्षों के दौरान भारत सरकार ने हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए आधुनिक तकनीक के माध्यम से सार्वजनिक, प्रशासन, शिक्षा और वैज्ञानिक प्रयोग के अनुकूल उपयोगी बनाने का प्रयास किया है। 

गौरतलब है कि इस दिशा में हुए प्रगति की समीक्षा करने के लिए संसदीय राजभाषा समिति का भी गठन किया गया था। आँकड़े बताते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर वर्ष 2014 तक राष्ट्रपति के समक्ष इसके केवल 9 रिपोर्ट पेश किये गये थे। लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में अब तक 12 खंड पेश किये जा चुके हैं। 2019 से सभी 59 मंत्रालयों में हिंदी सलाहकार समितियों का गठन किया जा चुका है तथा इनकी बैठकें भी नियमित रूप से आयोजित की जा रही हैं। 

ध्यातव्य है कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में राजभाषा के प्रयोग को बढ़ाने की दृष्टि से अब तक कुल 528 नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन भी किया जा चुका है। विदेशों में भी लंदन, सिंगापुर, फिजी, दुबई और पोर्ट-लुई में नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन किया गया है। 

राजभाषा विभाग द्वारा हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए ‘अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन’, स्मृति आधारित अनुवाद प्रणाली ‘कंठस्थ’, ‘हिंदी शब्द सिंधु’ शब्दकोष का भी निर्माण किया है। इस शब्दकोष में संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल भारतीय भाषाओं के शब्दों को शामिल कर इसे निरंतर समृद्ध किया जा रहा है। विभाग ने कुल 90 हजार शब्द का एक ‘ई-महाशब्दकोष’ मोबाइल एप और लगभग 9 हजार वाक्य का ‘ई-सरल’ वाक्य कोष भी तैयार किया है। दूसरी ओर, सरकार द्वारा अनुवाद को आसान बनाने के लिए ‘भाषिणी ऐप’ का भी शुभारंभ किया गया। शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए देश में तीन संस्कृत विश्वविद्यालय भी स्थापित किये जा चुके हैं और राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन में ऐतिहासिक रूप से कार्य हो रहा है।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारत सरकार द्वारा किए जा रहे इन प्रयासों से हिन्दी और हमारी सभी मातृभाषाओं को नई ऊँचाइयाँ प्राप्त होंगी। इसके लिए यह आवश्यक है कि ये प्रयास विज्ञान और तकनीकी दृष्टिकोण से मेल खाते हुए हों, ताकि भाषाई समृद्धि का रास्ता और भी सुदृढ़ बने।