पिछले दस वर्षों में भारत की साक्षरता दर में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है। प्रधानमंत्री मोदी के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों की साक्षरता दर में 10% की वृद्धि हुई है, वहीं महिला साक्षरता दर में 14.5% का प्रभावशाली वृद्धि देखी गई है। इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है।
आज कांग्रेस के नेता प्रधानमंत्री मोदी की शिक्षा नीतियों को लेकर कई तरह के सवाल उठाते हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि कांग्रेस काल में पूरे देश में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति बेहद बदहाल थी। उनके शासन में छात्रों को अच्छी शिक्षा के लिए दर-दर भटकना पड़ता था। विभाग में भ्रष्टाचार अपने चरम पर थी और उच्च शिक्षण संस्थानों पर देश के संपन्न परिवारों का कब्जा था। लेकिन, बीते एक दशक में ही प्रधानमंत्री मोदी ने इस भीषण दुष्चक्र को पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया है। इसी का परिणाम है कि 2011 में जो ग्रामीण साक्षरता दर केवल 67.77% थी, उसका दायरा आज 77.50% हो गया। वहीं, महिला साक्षरता की दर 57.93% के मुकाबले 70.40% और पुरुष साक्षरता दर 77.15% के मुकाबले 84.7% है।
निःसंदेह, 21वीं सदी भारत की सदी है और इस कालखंड में अपनी पूरी क्षमता के साथ आगे बढ़ने के लिए शिक्षा का समावेशी होने अनिवार्य है। प्रधानमंत्री मोदी इसी सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र में इन सफलताओं के लिए शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और शिक्षा सचिव विनीत जोशी जैसे अधिकारियों का भी बड़ा योगदान है, जिन्होंने अपनी कर्तव्यनिष्ठा से नीतियों को मूर्त रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
आँकड़े बताते हैं कि आज़ादी के 70 वर्षों के बाद, देश में केवल 7 एम्स थे। लेकिन, आज इसकी संख्या 23 हो चुकी है। आज़ादी के 70 वर्षों में देश मे केवल 387 मेडिकल कॉलेज थे। लेकिन आज इसकी संख्या 700 से भी अधिक हो चुकी है। पहले देश में एमबीबीएस की केवल 51 हजार सीटें थीं, जो आज दोगुनी हो चुकी है। बीते 10 वर्षों में देश को 7 नये आईआईटी मिले हैं और सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की संख्या 316 से बढ़कर 480 से भी अधिक हो गई। वहीं, पहले देश में 38 हजार कॉलेज थे, जो अब बढ़कर 53 हजार से भी अधिक हो गए हैं।
कहने की आवश्यकता नहीं है कि पहले सुदूरवर्ती क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति अत्यंत नाजुक थी। कांग्रेस सरकार ने उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया था। लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी ने एक दूरदर्शी सोच के साथ डिजिटल इंडिया मिशन, नई शिक्षा नीति, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, पीएम श्री योजना, विद्यालक्ष्मी योजना, उल्लास योजना जैसे पहलों को शुरू किया, जिससे आज शिक्षा के साथ कौशल विकास को एक नई ऊँचाई मिल रही है।
यदि हम ‘डिजिटल इंडिया मिशन’ की बात करें, तो 2015 में शुरू इस पहल से स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा मिला है। इस पहल के अंतर्गत, सरकार द्वारा पूरे देश में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, इंटरनेट कनेक्टिविटी और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्मों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं लागू की गईं।
वहीं, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना से न केवल शिक्षा में लैंगिक समानता को बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर जन्म के समय लिंग अनुपात को भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ावा मिल रहा है। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में लागू ‘नई शिक्षा नीति’ से छात्रों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित हो रहा है।
वहीं, उल्लास कार्यक्रम एक ऐसी योजना है, जो औपचारिक शिक्षा से वंचित 15 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों को अपनी शिक्षा पूरी करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। इस पहल का वित्तीय परिव्यय 1037 करोड़ रुपये से भी अधिक है और इससे अभी तक 2 करोड़ से भी अधिक शिक्षार्थी जुड़ चुके हैं। संक्षिप्त शब्दों में कहा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी के इस पहल ने व्यस्क शिक्षा की पूरी परिभाषा को ही बदल कर रख दिया है।
हमें याद रखना चाहिए कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा में शिक्षा पर काफी बल दिया गया है। यह एक ऐसा प्रयास है, जिससे छात्रों की वैचारिक, तार्किक, विश्लेषण और शोध क्षमता को एक नई ऊँचाई मिलेगी, यह चिन्ता किये बगैर कि वह किस सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से वास्ता रखता है। ऐसे में यह कहना उचित होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने शिक्षा व्यवस्था में अपने अनगिनत सुधारात्मक प्रयासों से एक समृद्ध और ज्ञान-संचालित भविष्य के लिए एक सशक्त आधारशिला का निर्माण किया है। आज हम वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ के जिस संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं, तब बेहतर शिक्षा व्यवस्था के इन प्रयासों से हमें एक नई ऊर्जा मिलती है। हमें इसी गर्व के साथ आगे बढ़ते रहना है।