डॉ. मीना भाऊराव घुमे: एक बहुमुखी प्रतिभा की झलक
डॉ. मीना भाऊराव घुमे, लातूर, महाराष्ट्र की रहने वाली एक बहुमुखी प्रतिभा हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। 1978 में जन्मी डॉ. घुमे ने एम.ए., एम.फिल., एम.एड. और पीएच.डी. जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त की है।
शोध और लेखन: डॉ. घुमे ने “हरिशंकर परसाई के निबंधों में व्यंग्य की विविधता” और “महिला आत्मकथाओं में नारी” जैसे गंभीर विषयों पर शोध किया है और इन पर विस्तृत लेखन किया है। उनके 25 से अधिक शोध पत्र विभिन्न जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने “भारतीय नारीवाद” पर डिप्लोमा भी किया है और वर्तमान में अनुवाद के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं।
सम्मान और पुरस्कार: डॉ. घुमे को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक सम्मान और पुरस्कारों से नवाजा गया है। इनमें स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाडा विश्वविद्यालय से ‘विद्यापति’ और ‘विद्यावाचस्पति’ की उपाधियां, राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार परिषद द्वारा “डॉ. हरिवंशराय बच्चन” स्मृति पुरस्कार, जानज्योति बहुउद्देशीय संस्था द्वारा “राष्ट्रीय हिंदी अध्यापन सेवा कार्य पुरस्कार” और मनुष्यबळ विकास लोकसेवा अकादमी द्वारा “राज्यस्तरीय लक्षवेधी प्राध्यापक प्रतिभारत्न” पुरस्कार प्रमुख हैं।
समाज सेवा: डॉ. घुमे सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। वे महिलाओं के राष्ट्रीय संगठन “भारतीय स्त्री शक्ति” में युथ फोरम आयाम की कार्यकर्ता हैं और “स्त्री-पुरुष समानता” जैसे विषयों पर कार्यशालाएं आयोजित करती हैं।
साहित्यिक योगदान: डॉ. घुमे एक कुशल लेखिका भी हैं। उन्होंने “महिला आत्मकथाओं में नारी संवेदना”, “मुक्ति : स्त्री मुक्ति के आधुनिक संदर्भ”, “पहल : बढते कदम कामयाबी की ओर”, “श्रावणधारा” और “अपने अपने राम” जैसी कई पुस्तकें लिखी हैं। वे विभिन्न कवि गोष्ठियों में भाग लेती हैं और काव्यपाठ करती हैं।
शैक्षणिक योगदान: वर्तमान में डॉ. मीना भाऊराव घुमे दयानंद कला महाविद्यालय, लातूर में सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत हैं। वे युवाओं को शिक्षित करने और उन्हें सही दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।