प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ केवल धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह अर्थव्यवस्था को भी नई दिशा देने वाला एक महत्वपूर्ण आयोजन बन चुका है। इस महाकुंभ में विज्ञान, संस्कृति और अध्यात्म का अद्वितीय संगम दिखाई दे रहा है। पारंपरिक परंपराओं को आधुनिकता के साथ सामंजस्य बैठाते हुए, महाकुंभ समय के साथ बदलाव की ओर बढ़ता हुआ नजर आ रहा है।
2017 में यूनेस्को द्वारा कुंभ मेले को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता मिलने के बाद, यह आयोजन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी आकर्षण का केंद्र बन गया है। यह शोध और जिज्ञासा का विषय बना हुआ है कि बिना किसी विशेष निमंत्रण के, लाखों लोग एक स्थान पर कैसे इकट्ठा हो जाते हैं?
महाकुंभ में आधुनिक तकनीक और पर्यावरण संरक्षण दोनों पर समान रूप से ध्यान दिया जा रहा है। यहां लगभग 500 पर्यावरण संरक्षण संस्थाएं गंगा और कुंभ की स्वच्छता बनाए रखने के लिए ‘हर घर से एक थैला, एक थाली’ जैसे अभियानों के जरिए लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक कर रही हैं।
महाकुंभ में डिजिटल तकनीक का उपयोग केवल भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि 11 भाषाओं में कार्यरत एआई संचालित ‘कुंभ सहायक’ चैटबॉट भी महाकुंभ से संबंधित समस्त जानकारी प्रदान कर रहा है।
सरकार ने इस आयोजन को भव्य और सुगम बनाने के लिए लगभग 7000 करोड़ रुपये का निवेश किया है। इससे न केवल तीर्थाटन और रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि उत्तर प्रदेश की आर्थिक विकास दर में भी इज़ाफा होगा। प्रयागराज की विभिन्न हिस्सों से कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिए भारतीय रेलवे ने 3000 विशेष ट्रेनें चलाई हैं।
महाकुंभ के लिए प्रयागराज में गंगा पर छह लेन का पुल और चार लेन का रेलवे ओवरब्रिज बनाया गया है, वहीं हल्दिया-वाराणसी जलमार्ग को प्रयागराज तक विस्तारित किया गया है। इसके साथ ही कई बड़े उद्योगपति अपने उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग के लिए 3000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश कर रहे हैं।
45 दिनों तक चलने वाले इस आयोजन से होने वाली आर्थिक गतिविधियों से राज्य सरकार को 25,000 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व मिलने का अनुमान है। कुल वित्तीय लेनदेन 2.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना है, जबकि 2019 के अर्धकुंभ में यह आंकड़ा 1.2 लाख करोड़ रुपये था। महाकुंभ की एक और खास बात यह है कि इस बार डिजिटल लेनदेन को प्रोत्साहित करने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
कहने की आवश्यकता नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई में भारत सरकार ने हमारी सनातन संस्कृति से जुड़े व्यवहारों को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए अथक प्रयास किया है और इसी का परिणाम है कि आज जब मानवता के सामने प्राकृतिक और मानव जनित आपदाओं के कारण अस्तित्व का संकट छाया हुआ है, तो पूरी दुनिया हमारी ओर एक उम्मीद की नज़र से देख रही है।
हमने बीते एक दशक में योग, आयुर्वेद, मंदिर निर्माण, आदि जैसे कई पहलुओं के माध्यम से भारत की सनातन संस्कृति और धर्म को पुनर्स्थापित करने के मामले में एक महान उपलब्धि को हासिल किया है, जो हमें स्वयं को ‘विश्व गुरु’ के रूप में स्थापित करने की दिशा में पहला कदम है।
हमारी सनातन संस्कृति में समाज को एकजुट करने और आगे बढ़ाने की एक अभूतपूर्व क्षमता है। यह हमें विविध पृष्ठभूमियों और दृष्टिकोणों को समझने योग्य बनाने में पूर्णतः समर्थ है। हमारी हजारों वर्षों की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत, न केवल हमारे देश बल्कि, पूरी मानव जाति के विकास और विविधीकरण के लिए महत्वपूर्ण संपत्ति है। आज पूरा विश्व यह स्वीकार भी कर रहा है कि सनातन धर्म के जीवन आदर्शों और मूल्यों में ही वैश्विक शांति और कल्याण का संदेश निहित है।
हमने प्राचीन काल से ही मानव जाति को सत्य, अहिंसा, सहिष्णुता, सद्भाव का जो संदेश दिया है। आज उन संदेशों को हमें अपने जीवन के हर पहलू में आत्मसात करने की आवश्यकता है। आज हर भारतवासी को सनातन धर्म के नियमों और सिद्धांतों को पूर्णतः अपनाना होगा। हमें वेदों, उपनिषदों और गीता में वैज्ञानिक, प्रबंधन और जीवन कौशल से संबंधित सभी ज्ञान का अध्ययन करना होगा और पूरी एकजुटता के साथ आगे बढ़ना होगा।
हमें अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के बजाय मानवता और राष्ट्रहित के पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कालांतर में आदि शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद जैसे महात्माओं ने सनातन और वैदिक सिद्धांतों के आधार पर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के निर्माण के लिए जो मार्ग निर्धारित किया था, आधुनिक काल में कुछ वैसा ही कार्य प्रधानमंत्री मोदी के शासन काल में किया जा रहा है और उनके इन प्रयासों को भाजपा-आरएसएस का पूरा समर्थन हासिल हो रहा है।
इस संदर्भ में, हमें यह ज्ञात होना महत्वपूर्ण है कि हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति केवल धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठानों से हासिल नहीं होगी, बल्कि हमें सनातन और वैदिक सिद्धांतों के माध्यम से “हिंदुत्व” के लिए कार्य करना होगा। हमें इसके माध्यम से समस्त सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समस्याओं के निदान का मार्ग ढूंढ़ना होगा। हमें सनातन प्रणालियों से मानव मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना होगा, जिससे सार्वभौमिक चेतना का मार्गदर्शन हो।
हमने अपनी सनातन परम्परा के लक्ष्य को कहीं पीछे छोड़ दिया है। आज हम गहरी अज्ञानता और भौतिक चेतना में दबे हुए हैं। हमें अपनी परंपराओं और प्रथाओं को सहजता और स्पष्टता के साथ पुनर्जीवित करना होगा। हम एक भारतवंशी के तौर पर अपने महान पूर्वजों और ऋषियों की विरासत को संभालने और समझने में यूं विफल नहीं हो सकते हैं।
हम एक करुणामय, समावेशी और शांतिपूर्ण भविष्य के निर्माण के लिए संस्कृति की शक्ति का उपयोग ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के मंत्र के साथ करना होगा, जिसे हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई वैश्विक मंचों पर बारंबार दोहरा चुके हैं।
हम अपने प्राचीन काल के किसी भी ज्ञान या परंपरा को अपने व्यक्तिगत अनुभव या महत्व से जोड़कर बेहद आसानी से समझ सकते हैं। यह हमारे भावी पीढ़ियों को भी अपनी मिट्टी से जोड़ने में अत्यंत मददगार साबित होगा।
सनातन धर्म के आलोचकों को यह समझना होगा कि यह धर्म हमारे जीवन के मूल्यों, दर्शन और व्यवहार से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। इसे कभी भी हम अपनी आस्थाओं से अलग करके नहीं देख सकते। हमारा मार्ग कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। अगर हम अपने धैर्य, साहस और सामंजस्य से इस संस्कृति को संरक्षित और पुनर्निर्मित करें, तो यही हमारी मातृभूमि के प्रति सबसे बड़ी सेवा होगी।
यदि हम धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से एकजुट होकर एक मजबूत समुदाय के रूप में आगे बढ़ें, तो हिन्दू धर्म में जातिवाद और आर्थिक भेदभाव का कोई स्थान नहीं रहेगा। हम समानता, समरसता और एकता में विश्वास करेंगे। ऐसा समाज बनाने से, कोई भी भारत-विरोधी ताकत हमारे सामने टिक नहीं सकेगी। हम हर चुनौती का सामना दृढ़ता और साहस के साथ करेंगे।
हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि एकजुट हिंदू समाज ही न केवल अपने राष्ट्र के लिए, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए एक बेहतर भविष्य की दिशा तय करेगा। इससे अन्य धर्मों के अनुयायी भी आगे बढ़ने और समृद्ध होने में प्रेरित होंगे।